शनिवार, मई 16, 2009

माँ / भाग 27 (विविध)

हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये

जब सूखने लगे तो जलाने के काम आये


कोयल बोले या गौरेय्या अच्छा लगता है

अपने गाँव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है


ख़ानदानी विरासत के नीलाम पर आप अपने को तैयार करते हुए

उस हवेली के सारे मकीं रो दिये उस हवेली को बाज़ार करते हुए


उड़ने से परिंदे को शजर रोक रहा है

घर वाले तो ख़ामोश हैं घर रोक रहा है


वो चाहती है कि आँगन में मौत हो मेरी

कहाँ की मिट्टी है मिझको कहाँ बुलाती है


नुमाइश पर बदन की यूँ कोई तैयार क्यों होता

अगर सब घर हो जाते तो ये बाज़ार क्यों होता


कच्चा समझ के बेच न देना मकान को

शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आये


अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मिशअलें लेकर

परोंदों कीमुसीबत का पता जुगनू लगाते हैं


तूने सारी बाज़ियाँ जीती हैं मुझपे बैठ कर

अब मैं बूढ़ा हो रहा हूँ अस्तबल भी चाहिए


मोहाजिरो! यही तारीख़ है मकानों की

बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा

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