सरफिरे लोग हमें दुश्मने-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
हम पे जो बीत चुकी है वो कहाँ लिक्खा है
हम जो बीत रही है वो कहाँ कहते हैं
वैसे यह बात बताने की नहीं है लेकिन
हम तेरे इश्क़ में बरबाद हैं हाँ कहते हैं
तुझको ऐ ख़ाक-एवतन मेरे तयम्मुम की क़सम
तू बता दे जो ये सजदों के निशाँ कहते हैं
आपने खुल के मुहब्बत नहीं की है हमसे
आप भाई नहीं नहीं कहते हैं मियाँ कहते हैं
शायरी भी मेरी रुसवाई पे आमादा है
मैं ग़ज़ल कहता हूँ सब मर्सिया-ख़्वाँ कहते हैं
शनिवार, मई 16, 2009
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
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