शनिवार, मई 16, 2009

दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ

दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ

अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ

मैं ख़्वाब नहीं आपकी आँखों की तरह था
मैं आपका लहजा नहीं अस्लोब रहा हूँ

इस शहर के पत्थर भी गवाही मेरी देंगे
सहरा भी बता देगा कि मजज़ूब रहा हूँ

रुसवाई मेरे नाम से मंसूब रही है
मैं ख़ुद कहाँ रुसवाई से मंसूब रहा हूँ

दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ

फेंक आए थे मुझको भी मेरे भाई कुएँ में
मैं सब्र में भी हजरते अय्यूब रहा हूँ

सच्चाई तो ये है कि तेरे क़रयए दिल में
ऐसा भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ

शोहरत मुझे मिलती है तो चुपचाप खड़ी रह
रुसवाई मैं तुझसे भी तो मंसूब रहा हूँ

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