जब-जब मैं सच कहता हूं।
सब को लगता कड़वा हूं।
वो मेरी टांग की ताक में है,
कि कब मैं ऊपर उठता हूं।
जो भी नोक पर आते हैं,
बस उनको ही चुभता हूं।
उम्र में जमा सा बढ़ता हूं,
जीवन से नफी सा घटता हूं।
तू जो मुझ पर मरती है,
इसीलिये तो जीता हूं।
वो नाखून दिखाने लगते हैं,
घावों की बात जो कहता हूं।
तूफान खड़ा हो जाता है,
जब तिनका-तिनका जुड़ता हूं।
शनिवार, मई 16, 2009
जब-जब मैं सच कहता हूं
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