वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का
आँगन में इक दरख़्त पुराना नहीं रहा
वो तो लिखा के लाई है क़िस्मत में जागना
माँ कैसे सो सकेगी कि बेटा सफ़र में है
३९.
शाहज़ादे को ये मालूम नहीं है शायद
माँ नहीं जानती दस्तार का बोसा लेना
आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख किया माँ लिखा हुआ
अभी तो मेरी ज़रूरत है मेरे बच्चों को
बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्त्ज़ाम कर लेंगे
मैं हूँ मेरा बच्चा है खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है
ऐ ख़ुदा ! तू फ़ीस के पैसे अता कर दे मुझे
मेरे बच्चों को भी यूनिवर्सिटी अच्छी लगी
भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो
शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा
खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगे
तुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँढ लेना है
ममता की आबरू को बचाया है नींद ने
बच्चा ज़मीं पे सो भी गया खेलते हुए
शनिवार, मई 16, 2009
माँ / भाग 9
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