शनिवार, मई 16, 2009

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है
सच होंठ पर लेकिन आता तो है।

अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,
मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।

तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,
है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।

फिज़ाओं में यूँ ही नहीं है हलचल,
तीर चुपके से कोई चलाता तो है।

दुश्मन व्यवस्था को टुकड़े न समझें,
दिशाओं का आपस में नाता तो है।

खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,
वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।

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