भोर का वहम पाले उनको ज़माना हुआ।
कब सुनहरी धूप का गुफाओं में जाना हुआ।
रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी,
भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ।
मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका,
शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ।
तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर,
मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ।
हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास,
जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ।
थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार,
लो सज-धज के कमवख़्त का भी आना हुआ।
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
शनिवार, मई 16, 2009
भोर का वहम पाले उनको ज़माना हुआ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें