वो जालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल जाता है
दिसंबर जनवरी में कोई नैनीताल जाता है!
अभी तो बेवफाई का कोई मौसम नहीं आया
अभी से उड के क्यों ये रेशमी रूमाल जाता है
वजारत के लिए हम दोस्तों का साथ मत छोडो
इधर इकबाल आता है उधर इकबाल जाता है
मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन जाओ
कहीं संसद में खाने कोई चावल दाल जाता है
ये मेरे मुल्क का नक्शा नहीं है एक कासा है
इधर से जो गुजरता है वो सिक्के डाल जाता है
मोहब्बत रोज पत्थर से हमें इंसां बनाती है
तआस्सुब रोज दिन आंखों पे परदा डाल जाता है
शनिवार, मई 16, 2009
वो ज़ालिम मेरी हर ख़्वाहिश ये कहकर टाल जाता है
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