शनिवार, मई 16, 2009

बाज़ारी पेटीकोट की सूरत हूँ इन दिनों

बाज़ारी पेटीकोट की सूरत हूँ इन दिनों
मैं सिर्फ़ एक रिमोट की सूरत हूँ इन दिनों

ज़ालिम के हक़ में मेरी गवाही है मोतबर
मैं झुग्गियों के वोट की सूरत हूँ इन दिनों

मुँह का मज़ा बदलने को सुनते हैं वो ग़ज़ल
टेबुल पे दालमोंट की सूरत हो इन दिनों

हर श्ख़्स देखने लगा शक की निगाह से
मैं पाँच-सौ के नोट की सूरत हूँ इन दिनों

हर शख़्स है निशाने पे मुझको लिए हुए
कैरम की लाल गोट की सूरत हूँ इन दिनों

घर में भी कोई ख़ुश न हुआ मुझको देखकर
यानी मैं एक चोट की सूरत हूँ इन दिनों

मौसम भी अब उड़ाने लगा है मेरी हँसी
इतने पुराने कोट की सूरत हूँ इन दिनों

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