शनिवार, मई 16, 2009

माँ / भाग 29 (विविध)

वो चिड़ियाँ थीं दुआएँ पढ़ के जो मुझको जगाती थीं

मैं अक्सर सोचता था ये तिलावत कौन करता है


परिंदे चोंच में तिनके दबाते जाते हैं

मैं सोचता हूँ कि अब घर बसा किया जाये


ऐ मेरे भाई मेरे ख़ून का बदला ले ले

हाथ में रोज़ ये तलवार नहीं आयेगी




नये कमरों में ये चीज़ें पुरानी कौन रखता है

परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है


जिसको बच्चों में पहुँचने की बहुत उजलत हो

उससे कहिये न कभी कार चलाने के लिए


सो जाते हैं फुट्पाथ पे अखबार बिछा कर

मज़दूर कभी नींद की गोलॊ नहीं खते


पेट की ख़ातिर फुटपाथों पे बेच रहा हूँ तस्वीरें

मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया


जब उससे गुफ़्तगू कर ली तो फिर शजरा नहीं पूछा

हुनर बख़ियागिरी का एक तुरपाई में खुलता है

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