ऐ ज़िन्दगी !
पता नहीं तू भी
क्या क्या खेल खेलती है ....
आज बरसों बाद
जब दर्द ने
ख़ुद मेरे ही कंधों पर
सर रख रो लेना चाहा है
तब
मेरी जीस्त के
तल्खियात भरे सफहों में
न प्रेम से भीगे वो शब्द हैं
न उन्स* भरे वो हाथ
अब एसे में
तुम ही कहो
मै कैसे उसे
सांत्वना दूँ ........!?!
उन्स*= स्नेह
गुरुवार, मार्च 11, 2010
जब दर्द ने रो लेना चाहा ........
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