गुरुवार, मार्च 11, 2010

जो जंजीरें खुलीं

रात आसमाँ के घर नज़्म मेहमाँ बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्‍म़ से जँज़ीरें जो खोलीं
नज़्म सिमटकर हुई छुईमुई-छुईमुई

ख्‍वाबों ने नज़्मों का ज़खीरा बुना
हरफ रातभर झोली में सजते रहे
नज्‍म़ टाँकती रही शब्‍द आसमाँ में
आसमाँ जिस्‍म़ पे ग़ज़ल लिखता रहा

वक्‍त पलकों की कश्‍ती पे होके सवार
इश्‍क के रास्‍तों से गुज़रता रहा
तारों ने झुक के जो छुआ लबों को
नज़्म शरमा के हुई छुईमुई-छुईमुई

0 टिप्पणियाँ: