कुछ उदास सी चुप्पियाँ
टपकती रहीं आसमां से
सारी रात...
बिजलियों के टुकडे़
बरस कर
कुछ इस तरह मुस्कुराये
जैसे हंसी की खुदकुशी पर
मनाया हो जश्न
चाँद की लावारिश सी रौशनी
झाँकती रही खिड़कियों से
सारी रात...
रात के पसरे अंधेरों में
पगलाता रहा मन
लाशें जलती रहीं
अविरूद्ध साँसों में
मन की तहों में
कहीं छिपा दर्द
खिलखिला के हंसता रहा
सारी रात...
थकी निराश आँखों में
घिघियाती रही मौत
वक्त की कब्र में सोये
कई मुर्दा सवालात
आग में नहाते रहे
सारी रात...
जिंदगी और मौत का फैसला
टिक जाता है
सुई की नोंक पर
इक घिनौनी साजि़श
रचते हैं अंधेरे
एकाएक समुन्दर की
इक भटकती लहर
रो उठती है दहाडे़ मारकर
सातवीं मंजिल से
कूद जाती हैं विखंडित
मासूम इच्छाएं
मौत झूलती रही पंखे से
सारी रात...
कुछ उदास सी चुप्पियाँ
टपकती रहीं आसमां से
सारी रात...
गुरुवार, मार्च 11, 2010
कुछ उदास सी चुप्पियाँ
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