(१)
बरसों पहले
जो तुम
इक धूप का टुकड़ा
मेरे आँगन में
रोप गए थे
अब उसमें
मुहब्बत के बीज
उगने लगे हैं
शायद अबके
नागफनी खिल उठे .......!!
(२)
आज
न जाने क्या बात हुई
छितरे बादल
आवारा टुकड़ियों में
चाँद से
अटखेलियाँ करते रहे
मैंने रोशनदान से झाँका
रात भी करवट बदल
सोने का बहाना
कर रही थी ......!!
(३)
आज ये
दोपहर की
लम्बी सांसें
न जाने क्यों
उम्मीद के धागे
बुनने लगीं है
रब्बा....!
वह लाल दुपट्टा आज भी कहीं
मेरे पास पड़ा है ....!!
गुरुवार, मार्च 11, 2010
वह लाल दुपट्टा.....
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