उदास सी इक शाम
खिड़की पे उतर आई है
मौत इक कदम चल कर
कुछ और करीब आई है
चलो अच्छा है
अब न सहना होगा
लंबी रातों का दर्द
न अब देह बेवहज
दर्द के बीज बोयेगी
लो मैंने खोल दी है
आसमां की चादर
रंगीन धागों में इक किरण
कफ़न सिल लाई है
उम्मीदों के पत्ते
गम की बावली में डुबोकर
जिन्दगी
वेश्या सी मुस्कुराई है।
गुरुवार, मार्च 11, 2010
उदास सी इक शाम
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