गुरुवार, मार्च 11, 2010

जो भी सपना

जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िन्दगी की दास्ताँ रह जाएगा

कट गए है हाथ तो आवाज़ से पथराव कर
याद सबको यार मेरे ये समाँ रह जाएगा।

भूख है तो भूख का चर्चा भी होना चाहिए
वरना घुट कर सबके भीतर ये धुआँ रह जाएगा।

ये धुँधलके हैं समय के तू अभी परवाज़ कर
फट गया गर यूँ ही बादल, तू कहाँ रह जाएगा।

जो भी पूछे ये अदालत बोल देना बेझिझक
तू न रह पाया तो क्या तेरा बयाँ रह जाएगा।

0 टिप्पणियाँ: