मंगलवार, मार्च 09, 2010

उसने इतना तो सलीका रक्खा

उसने इतना तो सलीका रक्खा
बंद कमरे में दरीचा रक्खा

तुमने आँगन में बनाई गुमटी
मैंने छोटा-सा बगीचा रक्खा

गीत आज़ादी के गाये सबने
और पिंजरे में परिंदा रक्खा

उसने हर चीज़ बदल दी अपनी
जिस्म का घाव पुराना रक्खा

घर बनाने के लिए पक्षी ने
चार तिनकों पे भरोसा रक्खा

उसने जाते हुए अश्कों से भरा—
मेरे हाथों पे लिफ़ाफ़ा रक्खा.

1 टिप्पणियाँ:

Randhir Singh Suman ने कहा…

उसने जाते हुए अश्कों से भरा—
मेरे हाथों पे लिफ़ाफ़ा रक्खा.nice