मैं वक़्त का अन्दाज़े-बयाँ बेच रहा हूँ
मिटते हुए लम्हों के निशाँ बेच रहा हूँ
तक़लीफ़ तो होगी मेरे बच्चों को यक़ीनन
मैं आज खिलौनों की दुकाँ बेच रहा हूँ
इस मुश्किले-दौराँ का सितम पूछ न मुझसे
जो मैंने बनाया था मकाँ बेच रहा हूँ
रहज़न हैं, लुटेरे हैं,कई डान खड़े हैं
तू देख कि मैं ख़ुद को कहाँ बेच रहा हूँ
हैरानी तो ये है कि ख़रीदार कई हैं
बाज़ार मेम ज़ख़्मों के निशाँ बेच रहा हूँ
क्या और कोई मुझ-सा बुरा होगा जहाँ में
मंडी में चिताओं का धुआँ बेच रहा हूँ.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
मैं वक़्त का अन्दाज़े-बयाँ बेच रहा हूँ
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