जुलूस आपने जब भी कभी आपने निकाले हैं
डरी हैं मस्जिदें, घबरा गए शिवालें हैं
पड़े हुए ह्हैं जो ख़ामोश नी के पत्थर
इन्होंने शीश महल आपके सँभाले हैं
रहें नक़ाब में जुगनू चराग़ और तारे
ये बादशाहों के फ़रमान भी निराले हैं
हमारी ज़िन्दादिली का न पूछीए आलम
कि हमने दर्द परिन्दों की तरह पाले हैं
तवील रास्तों को तय करेंगे हम इक दिन
हमारे पाँवों में बेशक हज़ार छाले हैं.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
जुलूस आपने जब भी कभी आपने निकाले हैं
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