रस्ता इतना अच्छा था
पाँव का छाला हँसता था
कमरे में तारीकी थी
छत पे चाँद टहलता था
पत्थर का था फूल अजब
तितली को धमकाता था
दुनिया के हर मेले में
सच बेचारा तन्हा था
गए वक़्त का सरमाया
ख़ाकदान में रक्खा था
बचपन की फोटो देखी
तब मैं कितना अच्छा था
बुझे हुए सन्नाटे में
दुख का दीपक जलता था
ज्ञानी-ध्यानी सब झूठे
मस्तकलन्दर सच्चा था.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
मस्तकलन्दर सच्चा था
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