मंगलवार, मार्च 09, 2010

सब पुरानी निशानियाँ गुमसुम

सब पुरानी निशानियाँ गुमसुम
ज़िन्दगी की कहानियाँ गुमसुम

घर के बाहर पिता है फ़िक्रज़दा
घर में रहती हैं बेटियाँ गुमसुम

एक कम्बल था गुम हुआ यारो
अबके गुज़रेंगी सर्दियाँ गुमसुम

झोंपड़ी की तो ख़ैर फ़ितरत थी
हमने देखीं अटारियाँ गुमसुम

दश्ते-तन्हाई भी अजब शय है
पेड़ ख़ामोश , झाड़ियाँ गुमसुम

क़त्ल कर आई हैं चरागों का
देख, बैठी हैं आँधियाँ गुमसुम

मेरे सन्दूकचे में चुप एलबम
तेरे बस्ते में चिठ्ठियाँ गुमसुम

फिर उड़ीं हैं फ़साद की ख़बरें
दर हैं ख़ामोश, खिड़्कियाँ गुमसुम.

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