सब पुरानी निशानियाँ गुमसुम
ज़िन्दगी की कहानियाँ गुमसुम
घर के बाहर पिता है फ़िक्रज़दा
घर में रहती हैं बेटियाँ गुमसुम
एक कम्बल था गुम हुआ यारो
अबके गुज़रेंगी सर्दियाँ गुमसुम
झोंपड़ी की तो ख़ैर फ़ितरत थी
हमने देखीं अटारियाँ गुमसुम
दश्ते-तन्हाई भी अजब शय है
पेड़ ख़ामोश , झाड़ियाँ गुमसुम
क़त्ल कर आई हैं चरागों का
देख, बैठी हैं आँधियाँ गुमसुम
मेरे सन्दूकचे में चुप एलबम
तेरे बस्ते में चिठ्ठियाँ गुमसुम
फिर उड़ीं हैं फ़साद की ख़बरें
दर हैं ख़ामोश, खिड़्कियाँ गुमसुम.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
सब पुरानी निशानियाँ गुमसुम
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