ऐ मेरे जहान के देवता, ये तेरा वितान अजीब है
तेरी वेदना में है रौशनी, तेरी आनबान अजीब है
तेरे अश्क जलते हुए दीए,तेरी मुस्कुराहटें चाँदनी
मैं तुझे कभी न समझ सका, तेरी दास्तान अजीब है
नहीं मौसमों से गिला इसे, नहीं तितलियों से शिकायतें
तेरे बन्द कमरे का जानेमन, तेरा फूलदान अजीब है
यहाँ मुद्दतों से खड़ा हूँ मैं, यही सोचता कि कहाँ रहुँ
यहाँ सबके घर में दुकान है,यहाँ हर मकान अजीब है
मुझे इल्म है मेरे दोस्तो,मेरा तुम मज़ाक़ उड़ाओगे
मैं बिना परों का परिन्द हूँ, कि मेरी उड़ान अजीब है.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
ऐ मेरे जहान के देवता,ये तेरा वितान अजीब है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें