ज़िन्दगी की जंग में जाँबाज़ होना आ गया
मौत को तकिए के नीचे रख के सोना आ गया
ज़िन्दगी तेरे मदरसे में यही सीखा हुनर
मोम के धागे में अंगारे पिरोना आ गया
इस क़दर खुश था मेरी काग़ज़ की कश्ती देखकर
हाथ में जैसे समन्दर के खिलौना आ गया
और तो होना था क्या इन मुश्किलों में दोस्तो!
पीठ पर चट्टान जैसा बोझ ढोना आ गया
बाद मुद्दत के गया था आज मैं भाई के घर
उसकी आँखें नम हुईं मुझको भी रोना आ गया.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
ज़िन्दगी की जंग में जाँबाज़ होना आ गया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें