घर बाहर निकलती आवाज़ें
वक़्त के साथ चलती आवाज़ें
सुबह से शाम तक वही मंज़र
सिर्फ़ कपड़े बदलती आवाज़ें
एक बूढ़ा -सा रेडियो घर में
खरखराती निकलती आवाज़ें
एक बच्चे की तरह बिस्तर पे
अल-सुबह आँख मलती आवाज़ें
धूप के डालकर कर नए जूते-
दिन की सड़कों पे चलती आवाज़ें
क्या पता चाँद कोई उतरा हो
मेरी छत पर टहलती आवाज़ें
आरती के दीये में बैठी हैं
प्रार्थनाओं की जलती आवाज़ें.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
घर बाहर निकलती आवाज़ें
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