सुर्ख़रू हो कर अदब के साथ मर जाएँगे लोग
बे-मेहर के सामने क्यूँ हाथ फैलाएँगे लोग
ये शहर भी बे मुरव्वत है मगर इतना नहीं
आपकी इमदाद में दो-चार तो आएँगे लोग
पोस्टर सारे पुराने हो गए माहौल के
जाने कब बदली हुई आबो-हवा लाएँगे लोग
इस शहर की ज़हनियत का क्या करूँ मैं दोस्तो
तुम अगर सेहरा पढ़ोगे मर्सिया गाएँगे लोग
ले गया बचपन उटहा कर भीग जाने का हुनर
आएगी बरसात तो सब छतरियाँ लाएँगे लोग
जब चराग़ों की तरह जलने की सीखेंगे कला
ज़िन्दगी का अर्थ क्या है, ख़ुद समझ जाएँगे लोग.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
सुर्ख़रू हो कर अदब के साथ मर जाएँगे लोग
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें