उदास मौसमों को चुटकले सुनाते हो
बड़े अजीब हो काँटों को गुदगुदाते हो
वो जिस परिन्द के पंखों को तुमने नोंच दिया
उसी को उँची उड़ानों में आज़माते हो
सहन में रखते हो लपटों की खोल कर गठरी
फिर उसके बाद हवाओं को घर बुलाते हो !
हमारे जश्न में काफ़ी है एक गुड़ की डली
तुम ऐसी बात पे हैरानियाँ जताते हो
बवण्डरो, बड़ी ताक़त है आप में लेकिन
हमारॊ रेत की दीवार को गिराते हो
मख़ौल आपका माली उड़ाएँगे साहब !
कि आप तितलियों को व्याकरण सिखाते हो.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
उदास मौसमों को चुटकले सुनाते हो
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