गुरुवार, मार्च 11, 2010

तुम भी पूछना चाँद से

जब तुम
लौट जाओगे
मैं पलटूँगी
मौसम के पन्‍ने
यादों की चिट्‌ठी से
भर लूँगी
मुठ्‌ठी में बादल...

कुछ भीगे अक्षर
तपती देह पर रखकर
मैं खोलूँगी
रंगो की चादर...

पूछूँगी उनसे
हवाओं के दोष पर
बहते बादलों का पता
सूरज वाले मंत्र
और स्‍पर्श के
उन एहसासों को
जो जिंदा होगें
तुम्‍हारे सीने पर
'ओम' बनकर...

तुम भी पूछना
चाँद से
ताबूतों में बंद
हवाओं ने
कफ़न ओढा़ या नहीं...

0 टिप्पणियाँ: