अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता
पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता
मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता
अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता
तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता
तमाम उम्र बनाई हैं तूने बन्दूकें
अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता.
मंगलवार, मार्च 09, 2010
अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
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1 टिप्पणियाँ:
मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता
अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
Sanjay kumar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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