शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

कितने सपनों को आँजकर आया

कितने सपनों को आँजकर आया
गाँव जब भी महानगर आया

मेरे सिर पर जो हाथ उसने रखा
तो अनायास कण्ठ भर आया

वो निकष पर निकल गया पीपल
शुद्ध सोने-सा जो नज़र आया

उड़ते पंछी को रोकना चाहा
तो मेरे हाथ एक पर आया

सच्चे जोहरीच्का हाथ लगते ही
रूप पुखराज का निखर आया

मैने मुड़कर उधर नहीं देखा
जिस झरोखे से उसका स्वर आया

जो कभी दूर ले गया था मुझे
रास्ता वो ही मेरे घर आया

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