जिसको अपना कह सकूँ ,बस्ती में ऐसा घर न था
नील अम्बर लके सिवा सर पर कोई छप्पर न था
अपने बारे में कहीं कोई ग़लतफ़हमी न थी
कोई खुशफहमी का चश्मा मेरी आँखों पर न था
आइनों के व्यंग्य उसको इसलिए सहने पड़े
क्योंकि उसके हाथ में अधिकार का पत्थर न था
देखते ही जिसको तुम पीछे हटे थे दस कदम
मुझ सपेरे के लिए वो दोस्त था विषधर न था
ये तो सच है - अनवरत चलता रहा वो आदमी
उसके तन का बोझ, लेकिन' उसके पैरों पर न था
वो ज़हर पी तो गया लेकिन पचा पाया नहीं
क्योंकि वो सुकरात था भगवान शिव शंकर न था
इस व्यवस्था में लड़ना बहुत मुश्किल नहीं
किंतु वो कम लड़ने वाला आदमी कायर न था
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
जिसको अपना कह सकूँ ,बस्ती में ऐसा घर न था
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