जब भी औरत ने अपनी सीमा- रेखा को पार किया
पार-गमन से पहले ख़ुद को कितने दिन तैयार किया
जनता को सहने की आदत है सब कुछ सह लेती है
किसी कष्ट को ले कर जनता ने कब हाहाकार किया
वो कारोबारी दिमाग था, सागर -तट पर जा बैठा
लहरें गिन-गिनकर भी उसने लाखों का व्यापार किया
द्वन्द्व-युद्ध जैसा ,कुछ मन के अन्दर चलता रहता है
क्यों चलता रहता है , तुमने इस पर कभी विचार किया?
वे केवल आरोपों की भाषा में बातें करते हैं
अच्छे कामों का भी, उन लोगों न्रे ग़लत प्रचार किया
जितनी ताक़त होगी उतना ही तो बोझ उठाएगा
उसने जो भी किया , स्वयं की क्षमता के अनुसार किया
निर्बल कोई भी हो, औरत, हरिजन अथवा शीशमहल
निर्बल पर ताक़तवर ने, हर युग में, अत्याचार किया
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
जब भी औरत ने अपनी सीमा रेखा को पार किया
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