शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

हमारे स्वप्न भी हम को जगाते हैं

हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं
अंधेरे में भी जुगनू मुस्कुराते हैं



बहुत कम लोग कर पाते हैं ये साहस
चतुर चेहरों को आईना दिखाते हैं



जो उड़ना चाहते हैं उड़ नहीं पाते
वो जी भर कर पतंगों को उड़ाते हैं



नहीं माना निकष हमने उन्हें अब तक
मगर वो रोज़ हमको आज़माते हैं



उन्हें भी नाच कर दिखलाना पड़ता है
जो दुनिया भर के लोगों को नचाते हैं



बहुत से पट कभी खुलते नहीं देखे
यूँ उनको लोग अक्सर खटखटाते हैं



हमें वो नींद में सोने नहीं देते
हमारे स्वप्न भी हम को जगाते हैं

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