घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए
आँसू, नयन— कुटी से निकल कर बदल गए
अब तो स्वयं—वधू के चयन का रिवाज़ है
कलयुग शुरू हुआ तो स्वयंवर बदल गए
मिलता नहीं जो प्रेम से, वो छीनते हैं लोग
सिद्धान्त वादी प्रश्नों के उत्तर बदल गए
धरती पे लग रहे थे कि कितने कठोर हैं
झीलों को छेड़ते हुए कंकर बदल गए
होने लगे हैं दिन में ही रातों के धत करम
कुछ इसलिए भि आज निशाचर बदल गए
इक्कीसवीं सदी के सपेरे हैं आधुनिक
नागिन को वश में करने के मंतर बदल गए
बाज़ारवाद आया तो बिकने की होड़ में
अनमोल वस्तुओं के भी तेवर बदल गए.
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए
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