शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

यहाँ उड़ने के अवसर हैं हज़ारों

यहाँ उड़ने के अवसर हैं हज़ारों
किराए पर यहाँ पर हैं हज़ारों

ये सत्ता की सियासत का शहर है
यहाँ हर ओर अजगर हैं हज़ारों

मुकद्दार का सिकन्दर मैं नहीं हूँ
मुकद्दर के सिकन्दर हैं हज़ारों

लड़ानी हैं जिन्हें अपनी बटेरें
उन्हीं के पास तीतर हैं हज़ारों

अकेले में मैं अक्सर सोचता हूँ
बदलते क्यों मेरे स्वर हैं हज़ारों

नहीं दिखते कहीम वे तीन बन्दर
यूँ गांधी जी के बंदर हैं हज़ारों

है मेरी लेखनी कविता की गागर
मेरी गागर में सागर हैं हज़ारों

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