पीड़ा से रिश्ता पक्का कर जाता है
जो आता है घाव हरा कर जाता है
तुम कविता में भी लिखते हो गद्य बहुत
वो लेखों तक में कविता कर जाता है
मैं भी उसके साथ कभी रो लेता हूँ
वह भी रोकर दिल हल्का कर जाता है
बादल से सूरज तो क्या लड़ पाएगा
हाँ, कुछ पल सिर पर साया कर जाता है
हम लोगों की खस्ता माली हालत पर
वह खाली – पीली चिंता कर जाता है
बाँट रहा है रोज बताशे बातों के
बातों से मुँह को मीठा कर जाता है
लोग सदा बूढ़े होने से डरते हैं
वक्त आदमी को बूढ़ा कर जाता है.
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
पीड़ा से रिश्ता पक्का कर जाता है
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