अधिक नहीं ,वे अधिकतर की बात करते हैं
नदी को छोड़ समंदर की बात करते हैं
हमारे दौर में इन्सान का अकाल रहा
ये लोग फिर भी पयम्बर की बात करते हैं
जिन्हें भरोसा नहीं है स्वयं की मेहनत पर
वे रोज़ ही किसी मन्तर की बात करते हैं
नहीं है नींव के पत्थर का जिक्र इनके यहाँ
ये बेशकीमती पत्थर की बात करते हैं
ये अफसरी भी मनोरोग बन गई आखिर
वो अपने घर में भी दफ्तर की बात करते हैं
मैं कैसे मान लूँ —वो लोग हो गये हैं निडर
जो बार —बार किसी डर की बात करते हैं
वो अपने आगे किसी और को नहीं गिनते
वो सिर्फ अपने ही शायर की बात करते हैं.
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
अधिक नहीं ,वे अधिकतर की बात करते हैं
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1 टिप्पणियाँ:
क्या खूब सरल शब्दों में सच्चाई बयां की है...
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