अलग मुस्कान मुद्राएँ अलग हैं
समारोहों की भाषाएँ अलग हैं
जो असफल हैं,अलग है उनकी कुंठा
सफल लोगों की पीड़ाएँ अलग हैं
उन्हें तुम अपनी शैली में न बूझो
मेरे घर की समस्याएँ अलग हैं
जो अस्मत लुटते—लुटते बन गई थीं
वे कुछ ‘साक्षात् दुर्गाएँ’ अलग हैं
अमीरों की निराशा एक पल की
गरीबों की हताशाएँ अलग हैं
जो तर्कों कॊ पराजित कर रही हैं
निरंकुश मन की सेनाएँ अलग हैं
जिन्हें मैं लिख न पाया डायरी में
मेरी खामोश कविताएँ अलग हैं
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
अलग मुस्कान मुद्राएँ अलग हैं
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