हमें कहीं न कहीं , ये गुमान रहना है
सफर के साथ सफर की थकान रहना है
यूँ तीर की भी जरूरत तुम्हें तभी तक है
तुम्हारे हाथ में जब तक कमान रहना है
हमारी चादरें छोटी, शरीर लम्बे हैं
बस, इसलिए ही बहुत खींच तान रहना है
मैं ‘खास’ हूँ, ये जताने के वास्ते केवल
तुम्हारे मुँह के निकट, मेरे कान रहना है !
अतीत लौट के वापस कभी नहीं आता
हमारे साथ सदा वर्तमान रहना है
हमारे मुँह में किसी और की जुबान न हो
कुछ इस तरह भी हमें सावधान रहना है
‘प्रजा’ के ‘तंत्र’ में ‘राजा’ से कम नहीं हो तुम
तुम्हारी मुठ्ठी में हिन्दोस्तान रहना है
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
हमें कहीं न कहीं , ये गुमान रहना है
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