जब तलक फूल के वंशधर शेष हैं
हर तरफ़, खुश्बुओं के नगर शेष हैं
इसलिए हो न पाई तरल वेदना
आँसुओं में कहीं हिम-शिखर शेष हैं
कैद में भी उड़ानें असंभव नहीं
अनगिनत कल्पनाओं के ‘पर’ शेष हैं
माँग सकती है दशरथ से कुछ भी कभी
कैकई के अभी तीन ‘वर’ शेष हैं
कद्र तब तक ही होगी हुनरमन्द की
सामने जब तलक बेहुनर शेष हैं
दल-बदल से यही एक अन्तर पड़ा-
जो इधर से गए वो उधर शेष हैं
एक भी मोर्चा बन्द होगा नहीं
हर तरफ़ ज़िन्दगी के समर शेष हैं.
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
जब तलक फूल के वंशधर शेष हैं
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