कई ख़ुशबू भरी बातों से मिलकर
शहर लौटे हैं देहातों से मिलकर
कोई षड्यंत्र करना चाहती है
अमा की रात, बरसातों से मिलकर
हमारी ये बड़ी दुनिया बसी है
कई नस्लों, कई ज़ातों से मिलकर
शहर कितना भयानक हो गया था
तुम्हारे ‘दल’ के उत्पातों से मिलकर
वो बूढ़ा पेड़ तन-मन से हरा है
टहनियों के हरे पातों से मिलकर
गवाहों को बदल सकती है भाषा
उस अपराधी की सौगातों से मिलकर
कई आयात के रस्ते खुले हैं
किसी ‘तितली’ के निर्यातों से मिलकर.
शनिवार, फ़रवरी 20, 2010
कई ख़ुशबू भरी बातों से मिलकर
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